रिसचर्स ने एक ऐसी नए टाइप की lithium-ion battery तैयार की है, जो पोर्टाबेला मशरूम से चलेगी। ये मशरूम्स न केवल बेहद सस्ते हैं, बल्कि इनवॉयरमेंट फ्रेंडली होने के साथ आसानी से उगाए भी जा सकते हैं।
अमेरिकी के रिवरसाइड में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया में मैकेनिकल इंजीनियरिंग और मैटेरियल साइंस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर सेनगीज ऑस्कन (Cengiz Ozkan) के मुताबिक, मशरूम जैसे बॉयोलॉजिकल मैटेरियल्स से नैनोकॉर्बन ऑर्किटेक्चर्स तैयार किए जा रहे हैं, जो ग्रीन होने के साथ ग्रेफाइड बेस्ड अनोड्स का बेहतर विकल्प हैं।
फिलहाल इंडस्ट्री स्टैंडर्ड के मुताबिक लिथियम-ऑयन बैटरी अनोड्स में सिंथेटिक ग्रेफाइट होता है, जो बेहद खर्चीला होने के साथ इसका प्योरिफिकेशन और प्रिपरेशन प्रोसेस भी पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है।
लेकिन लिविंग ऑर्गेनिज्म से निकलने वाला बॉयोलॉजिकल मैटेरियल बॉयोमास, ग्रेफाइट का अच्छा ऑप्शन है, क्योंकि इसमें हाई कार्बन कंटेंट तो होता ही है, साथ ही ये बेहद सस्ता और इनवायरमेंट फ्रेंडली भी है।
रिसचर्स के मुताबिक, मशरूम से निकलने वाला बॉयोमास काफी पोरस (झरझरा) होता है। बैटरी मैटेरियल्स में इसके इस्तेमाल के बाद भविष्य के सेलफोन न केवल ज्यादा चलेंगे, बल्कि बैटरियां लंबें इस्तेमाल के बाद खराब भी नहीं होंगी।
मशरूम्स में हाई-पोटेशियम साल्ट के इस्तेमाल से इलेक्ट्रोलाइट-एक्टिव मैटेरियल न केवल बढ़ने लगता है, बल्कि कई नए छोटे-छोटे छिद्र (पोर्स) भी बनाता है, जिससे दीरे-धीरे बैट्री की कैपेसिटी बढ़ती है।
परंपरागत अनोड्स पहली कुछ साइकल में ही मैटेरियल को पूरी एक्सेस कर लेती है, जिससे इलेक्ट्रोड डैमेज होने से बैटरी की कैपेसिटी कमजोर होने लगती है। लेकिन मशरूम कार्बन अनोड टेक्नोलॉजी से केवल अनूकूल है, बल्कि ग्रेफाइट अनोड्स का बेहतर ऑप्शन भी है।